Kavita(poem)

 सच है विपत्ति जब आती है,

 कायर को ही दहलाती है।

सूरमा नहीं विचलित होते,

क्षण एक नहीं धीरज खोते।

विघ्नों को गले लगाते हैं,

काँटों में राह बनाते है।

है कौन विघ्न ऐसा जग में,

टिक सके आदमी के मग में।

खम ठोक ठेलता है जब नर,

पर्वत के जाते पावँ उखड़।

मानव जब जोर लगाता है,

पत्थर पानी बन जाता है।

गुण बड़े एक से एक प्रखर,

हैं छिपे मानवों के भीतर।

मेहंदी में जैसे लाली हो,

वर्तिका बीच उजियाला हो।

बत्ती जो नहीं जलाता है,

रोशनी नहीं वह पाता है।

कवि

रामधारी सिंह दिनकर 

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