सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
आज अपने पाठ पढ़ाने चला हूँ,
हाथों में किताबें, सबको बताने चला हूँ।
शब्दों की चंदनी से आंधी उठाने चला हूँ,
मानवता की उच्चता को जगाने चला हूँ।
उज्ज्वल आदर्शों का पुराना भविष्य लिखने चला हूँ,
विचारों के उजाले को अपने वचनों में छिपाने चला हूँ।
विज्ञान की किरणों से अंधकार हराने चला हूँ,
ज्ञान के सागर को उत्साह से पाने चला हूँ।
मैं पर्वतों की ऊँचाई पर जाने चला हूँ,
अद्वितीय सत्य को धरती पर बिखेरने चला हूँ।
आज अपने पाठ पढ़ाने चला हूँ,
ज्ञान की अमर धारा को बहाने चला हूँ।
सबको विद्या की खुशबू सुगंधित करने चला हूँ,
सोच की राहों में उम्मीदों को स्थापित करने चला हूँ।
आज अपने पाठ पढ़ाने चला हूँ,
प्रगति के सफर में सबको साथ लेकर चला हूँ।