डरावनी कहानियाँ (पुरानी हवेली का राज)

    डरावनी कहानियाँ (पुरानी हवेली का राज)

डरावनी कहानियाँ (पुरानी हवेली का राज)
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पहाड़ों की छाया में दबी, मानो समय में खोई हुई, एक पुरानी हवेली थी। जर्जर छत, टूटी खिड़कियाँ, और उखड़ी हुई जमीनें उसकी कहानी बयां करती थीं। गाँव के बुजुर्ग इसे ‘भूतों का ठिकाना’ कहते थे। बचपन से ही मुझे ऐसी कहानियों का चस्का था, इसलिए मैंने इस हवेली की खोज करने का मन बना लिया। एक धुंधली सुबह, अपने दोस्त राहुल के साथ, मैं हवेली की तरफ निकल पड़ा। जंगली पौधे रास्ते में रोड़े अटका रहे थे, मगर जिज्ञासा हमें आगे बढ़ा रही थी। हवेली के दरवाजे पर ताला लगा था, मगर जंग लगी कुंडी आसानी से टूट गई। अंदर का वातावरण घुटन देने वाला था। धूल की परतें जमी थीं और हवा में एक सड़ा हुआ गंध था। टूटी हुई सीढ़ियाँ हमें ऊपर ले गईं। कमरे खाली थे, सिवाय एक कमरे के जिसका दरवाजा थोड़ा खुला था।

अंदर झांकने पर मेरी सांस अटक गई। कमरे के बीचोबीच एक बड़ी सी मेज थी, जिस पर मोमबत्तियाँ जल रही थीं। उनके बीच एक पुराना दर्पण रखा था। दर्पण के सामने एक कुर्सी पलटी हुई थी, मानो कोई जल्दी में उठा हो। मेज पर एक खुली हुई किताब पड़ी थी, जिसके पन्ने हवा में हिल रहे थे। किताब उठाने के लिए मैं आगे बढ़ा, मगर तभी राहुल ने मेरा हाथ पकड़ लिया। “आगे मत बढ़ो,” उसने फुसफुसाते हुए कहा। “कुछ ठीक नहीं लग रहा।” उसकी बात अनसुनी कर, मैंने किताब उठाई। यह एक पुरानी डायरी थी, जिसके पन्ने पीले पड़ चुके थे। पहला पन्ना खोलते ही, मेरी रूह कांप गई। डायरी में लिखा था: “15वीं अगस्त, 1892: आज मैंने एक दर्पण खरीदा है, जो न केवल दिखाता है, बल्कि उसमें झांकने वाले की आत्मा को भी कैद कर लेता है।”

अचानक, कमरे में हवा तेज़ी से चलने लगी। मोमबत्तियाँ बुझ गईं और कमरा अंधकार में डूब गया। डर के मारे मैं चीख उठा। राहुल ने मेरा हाथ पकड़ा और हम दोनों भागने लगे। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए, मैंने पीछे मुड़कर देखा। दर्पण के सामने खाली कुर्सी अब गायब थी, और उसकी जगह एक धुंधली सी आकृति खड़ी थी।

हवेली से बाहर निकलकर, हम सांस लेने लगे। गाँव की तरफ भागते हुए, मैंने पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं जुटाई। उस रात, सोते हुए भी मेरे दिमाग में वही धुंधली आकृति घूमती रही।

सुबह उठकर, मैंने राहुल को फोन लगाया, मगर उसका फोन नहीं लगा। घबरा कर मैं उसके घर गया। दरवाजा खोलकर उसकी माँ ने बताया कि राहुल रात भर घर नहीं आया। गाँव वालों को साथ लेकर हम हवेली की तरफ लौटे।

हवेली का दरवाजा खुला था। अंदर जाने पर, ऊपर से चीखने की आवाज़ आई। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए, मेरा दिल धक् धक् कर रहा था। ऊपर के कमरे में पहुँचकर, मैं सन्न रह गया।

वही दर्पण, वही मेज, और वही खुली हुई किताब। लेकिन इस बार कुर्सी खाली नहीं थी। उस पर राहुल बैठा था, उसकी आँखें खुली थीं, मगर बेजान। दर्पण में उसका कोई चेहरा नहीं था, बस एक धुंधली सी आकृति जो मुस्कुरा रही थी।

हवेली से भागते हुए, मैं ये जानता था कि राहुल वापस नहीं आएगा।

उसका वजूद अब उस भयानक दर्पण में कैद हो चुका था। गाँव वालों ने हवेली को सील कर दिया, ताकि कोई और उसकी जद में न आए। मैं गाँव छोड़कर शहर चला गया, मगर राहुल का खौफनाक चेहरा और दर्पण में मुस्कुराती आकृति मेरे सपनों में मुझे सताती रही।

कुछ साल बाद, एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद के रूप में, मुझे उस इलाके में खुदाई का जिम्मा मिला। मौका देखकर, मैं चुपके से हवेली की तरफ गया। जंगल ने हवेली को अपने आगोश में ले लिया था, लेकिन ताला जस का तस था। इस बार मैंने एक लोहार को साथ लिया था।

ताला टूटते ही, हवेली के अंदर से एक ठंडी हवा का झोंका निकला। अंदर का वातावरण पहले से भी ज्यादा भयावह था। धूल जमी थी, हवा में सड़ांध थी, और सीढ़ियों की हालत और भी खस्ता हो चुकी थी।

धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते हुए, मैं उस कमरे की तरफ गया। दर्पण अब भी वहीं था, लेकिन मेज खाली थी और किताब गायब थी। कमरे के कोने में एक पुराना संदूक पड़ा था, जिसे मैंने पहले नहीं देखा था।

संदूक का ताला जंग खा चुका था। उसे खोलते ही, मेरी सांस थम गई। अंदर एक छोटा सा तांबे का बर्तन रखा था, जिसके अंदर एक काला पाउडर भरा हुआ था।

उसी पल, दर्पण में एक हलचल हुई। धुंधली आकृति मटियाला हो गई थी, मानो दर्पण से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हो। इससे पहले कि वह कुछ कर पाती, मैंने संदूक से पाउडर उठाया और उसे दर्पण पर छिड़क दिया।

हवा में एक भयानक चीख गूंजी। दर्पण तेज रोशनी के साथ फट गया और कमरे में धुआं भर गया। जब धुआं छंटा, तो दर्पण के टुकड़े जमीन पर बिखरे पड़े थे और कमरे में सन्नाटा था।

राहुल की आत्मा अब शांत हो चुकी थी, लेकिन उसके जाने का गम मेरे दिल में हमेशा रहेगा। हवेली को फिर से सील कर दिया गया, इस बार हमेशा के लिए। मैंने गाँव वालों को बताया कि मैंने एक प्राचीन अभिशाप को तोड़ दिया है।

हालाँकि, मैं जानता था कि असली अभिशाप उस डायरी में लिखे शब्दों का था, जिन्होंने दर्पण की भयावह शक्ति को जगा दिया था। डायरी को हमेशा के लिए किसी अंधेरे कोठरी में बंद कर दिया गया, ताकि कोई और उसकी ताकत का इस्तेमाल न कर सके।

यह मेरी जिंदगी का सबसे भयानक अनुभव था, मगर इसने मुझे ये भी सिखाया कि जिज्ञासा अच्छी है, लेकिन कभी-कभी कुछ रहस्य सुलझाए बिना ही बेहतर होते हैं।

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