कहानी: “इधर की ज़मीन, उधर का आकाश”

 

कहानी: "इधर की ज़मीन, उधर का आकाश"

                      कहानी: “इधर की ज़मीन, उधर का आकाश”

प्रमुख चरण विलेज़ में रहने वाले मुकुंदलाल बिन्देश्वरी जी बहुत संयमी और बुद्धिमान व्यक्ति थे। वे गांव के गरीब लोगों के लिए अपार मदद करते थे और उनके लिए एक शिक्षा केंद्र चलाने का सपना रखते थे। उन्होंने अपनी अदालती ज़मीन उधर के गरीब लोगों के लिए दान कर दी और वे बिना बात किए गांव के गरीब लोगों के लिए निर्माण कार्य शुरू कर दिया।

परंतु गांव के धनी लोगों को इस बात से खेद था कि मुकुंदलाल बिन्देश्वरी जी ने उधर की ज़मीन का उपयोग करके इस कार्य को पूरा किया था। उन्होंने चरण विलेज़ में विचार किया और एक चरण पर एक घनिष्ट बंदूकवाले द्वारा साथ लाए गए बड़े संपत्ति युक्त भूमि के बिलखते लेखक को दिया। इस पर मुकुंदलाल बिन्देश्वरी जी का ध्यान आकर्षित हुआ।

मुकुंदलाल बिन्देश्वरी जी ने एक दिन दौड़ते हुए और नींद खोकर बड़े भूमि मालिक से मिलने का निश्चय किया। वह उनसे उधर की ज़मीन के बारे में पूछते हैं, जिसकी उन्होंने गरीब लोगों के लिए निर्माण कार्य के लिए इस्तेमाल किया था। जब उन्होंने यह सब पूछा, तो भूमि मालिक ने उन्हें आपत्ति और नाराजगी से जवाब दिया कि वह चाहें तो इधर की ज़मीन उधर के आकाश में बदल सकते हैं।

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि व्यक्तित्व की महत्वपूर्णता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है। हमें बाहरी संपत्ति और सामाजिक स्थिति के चक्कर में न चलने, बल्कि गरीबों और कमज़ोरों की मदद करने में अपना समय और संसाधन लगाना चाहिए। मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी हमें इस सोच को प्रेरित करती है और हमें समाज की सुधार और समानता के प्रति जागरूक करती है।

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